@onkar_ram
ONKAR RAM
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धरती:- मुझे इंसान का प्रेम चाइए न की स्वार्थ। हर वर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। हमारी धरती पूरे ब्रह्मांड में सबसे सुंदर रचना हैं। साथ ही साथ इस धरती में अथाह सौन्दर्यता है। भिन्न भिन्न क्रियाकलापों की विविधता समाहित है। जीवन के पैदा करने व विकसित करने की अद्भुत परिस्थितियों से परिपूर्ण है। पूरी जगत की दुनियां कितनी भी मशक्कत कर लें लेकिन धरती जैसा रूप या ग्रह की रचना नहीं कर सकती है। यहाँ पर कही विशाल मैदान है, तो कही आसमान को छूते पर्वत, तो कही पर अनन्त गंभीर मुद्रा में खड़े समंदर, नदियों की पवित्रता, कल कल करती झरनों की आवाज, पेड़ों की हवा जो इंसानी जीवन को बेहद सुकून देती है। इंसान इनका उपभोग करना सीख गया है। यह धरती भी समय समय पर इसी इंसान को वात्सल्य देते हुए इनको कुछ न कुछ देती रहती है। आज तक धरती ने इंसान को अपने उपहार के बदले कुछ नहीं मांगा है। इंसान इसी धरती से हवा, फल, फूल, मनोरंजन आदि अपनी दैनिक आवश्यकता परिपूर्ण कर लेता है। आज के इंसान की आवश्यकता भौतिकवादी हो गयी है। इंसान आवश्यकता से अधिक धरती के अमूल्य उपहारों का उपभोग कर रहा है। फिर भी यह धरती अपने पुत्रों के कर्म को सहन करती जा रही है। इंसान पेड़ के एक फूल पर प्रेम रूपी कविताओं का भरमार लगा देता है। बारिश की बूंदे जब इंसानी बदन पर टकराती है, तब उन्हें ऐसी ठंडक का एहसास भी देती है, जो दुनिया की कोई मशीन नही दे सकती है। लेकिन प्रेम के सिवाय इंसान धरती का प्राकृतिक दोहन ही करने में सदैव आतुर रहता है। अगर धरती के अस्तित्व पर ही खतरा उत्पन्न हो जाये तो मानव जीवन कैसे सुरक्षित हो पायेगा? धरती है तो सारे तत्व है, इसलिए धरती एक अनमोल रत्न हैं। जल, अग्नि और हवा के समिश्रण से इस धरती का रूप सुंदर होता है। लेकिन इंसान अपने अपने स्वार्थों से इन्ही पर अत्याचार कर लेता है। इसी कारण दिनों दिन तापमान बढ़ रहा है, आबादी बढ़ रही है, जमीन व्यर्थ हो रही है, हर वस्तु की उपलब्धता कम होती जा रही है। प्राणदायी गैस ऑक्सीजन में भारी कमी हो रही हैं। हमारी सुविधाओं से परिपूर्ण जीवनशैली धरती के अस्तित्व के लिये गम्भीर खतरा बनती जा रही है। जल, जंगल,जमीन से युक्त धरती अब अपने सौंदर्यता को खो रही है। लेकिन धरती भी अपना बचाव जानती है, फिलहाल कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन की प्रणाली ने धरती को कही हद तक शुद्ध रूप दे दिया है। यह धरती की अपने बच्चों को प्रेरणा दी है। ताकि भविष्य में इंसान धरती के अनमोल उपहारों के महत्व को समझ सकें। हमारे सारे मजहब व धर्मों के ग्रन्थ सदैव धरती के प्रति प्रेम का पंथ अपनाने को बल देते है। लेकिन इंसान अपनी उपभोगवादी जिंदगी में इन्ही पंथ से विस्मृत होकर धरती के प्रति अपना कर्तव्य भूल ही चुका है। पृथ्वी पर आज जो भयंकर त्रासदी छाई हुई है वो हम सब मनुष्यों की देन है। जिस तरह हम सब अपने अपने स्वार्थों के लिये धरती का दोहन कर रहे है, इससे धरती भी अपने अस्तित्व से बिखर रही है। कभी भूकंप, कभी अतिवृष्टि, कभी अकाल, बाढ़, महामारी से धरती इंसान की चेतना जागृत कर रही है। फिर भी इंसान धरती की सौन्दर्यता को खत्म करने में तुला हुआ है। पेड़ खत्म हो रहे, पक्षी विलुप्त हो गए, नदिया प्रदूषित हो गयी, मैदान बंजर बन गए,हवा दूषित हो गयी, ग्लोबल वार्मिंग बढ़ गया है। क्या हम सब अपनी आने वाली पीढ़ी के लिये यह चीजें उन्हें देना चाहोंगें। जरा सोचिए पृथ्वी के प्रति अपनी सकारात्मक सोच कायम कीजिये। क्योंकि यह धरती आपसे प्रेम मांगती है, न कि नफरत या आपका स्वार्थ। आप इनसे प्रेम कीजिये। अपने तुच्छ स्वार्थ के लिये इनकी सुंदरता भंग मत कीजिये, क्योंकि यह धरती ही आपको सब कुछ उपलब्ध करा सकती है जो कोई विज्ञान भी नहीं दे सकता है। अपने धरती के प्रति कर्तव्य समझिये, उनका संरक्षण कीजिए। धरती के बिना हम का जीवन अधूरा है। हम सब आज ही प्रकृति और धरती की सुरक्षा के लिये उन्हें सरंक्षित करेंगे। आइए, इस अवसर पर हम सब मिलकर प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण को लेकर आमजन को जागरूक करने एवं पर्यावरण की सुरक्षा एवं प्राकृतिक संतुलन को बनाये रखने के लिए अधिकाधिक वृक्षारोपण करने का संकल्प लें। @OnkarRamBamniya
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Interesting if you translate. Google translation in English is a tip.